चला मुसाफ़िर राहो में
चला मुसाफ़िर राहो में, बिना किसी सहारे के, आए लाख तूफान उन राहो में । मगर कभी ना रुका वह। चला मुसाफ़िर राहो में , अपनी मंजिल को जब पाने, बिछ गए काटे उन राहो में, फिर भी ना रुका वह। चला मुसाफ़िर राहो में जब अपने हक को मंगने , रूठ गए उससे कितने अपने। चला मुसाफ़िर राहो में ।। *सबिया रब्बानी* ✍️✍️✍️