उस शाम की बातें
आज हवा ने नया एहसास कराया,शरीर के अंग अंग से लिपटती बालों को उड़ाती मुझको यहां महसूस कराती डर मत बस उड़ चल। आज इस शाम मैं बस थी बस मैं, सवाल नहीं थे मेरे अंदर पर एक मुस्कान थी, पर उन सवालों से कहीं दूर, मैं आज शांत थी।। पेड़ों को देखकर ऐसा एहसास हो रहा था मानो,जैसे बिन गानों के नाच रहे थे। बादल मानो सरपट दौड़ लगा रहे थे। वहीं दूसरी ओर चिड़िया का चहचहाना, एक सुकून था आज की इस हवा में, सारे तो नहीं कुछ सवालों के जवाब मिले, शांति सी थी मन में,
डूबता सूरज का वह प्रकाश मनो, एक इशारा दे रहा हो की आज का दिन गया कल सुबह फिर से होगी और एक नई सोच के साथ एक नई सुबह लाऊंगा।। वहीं दूसरी तरफ बारिश के बचे, पानी की लहरें बस चलती हवा के साथ मगन हो जाए, तरह-तरह की लहरें बनाकर,अपनी प्रसन्नता को दिखाते। आज कुछ सवाल नहीं थी मन में जो अक्षर में सोचा करती हूं खुद से पूछा करती हूं, कोई निराशा नहीं बस आज एक शांति सी थी दिल में, और इस हवा में बस मैं थी सिर्फ मैं।।